Friday, August 7, 2020

एक समय वह भी

 


एक समय वह भी था जब गाँव में कही चीजों का अभाव था बिजली तो दूर टार्च तक नहीं होता था । गाँव में आग जलाने के लिए घर से सूखी घास के गुच्छे या हंटर से मांग कर  लाते थे। उसी को फूक फूक कर जलाते थे । संचार का माध्यम केवल डाक तार होता था । यातायात के साधन नहीं थे। गांव के लोग वर्ष में एक बार शहर पैदल तथा घोडों से ही जाते थे। चावल दाल गेहूं आदि साथ में ले जाते थे और उनके बदले में वहां से साल भर के लिए कपड़ों के थान गुड नमक मसाले आदि अपने साथ कंधों सेे ढोकर लाते थे। उस समय साल भर के लिए अन्य हो जाता था।  पढ़ाई के लिए सरसों के तेल के दीपक जलाए जाते थे कभी-कभी छिलुुुक से भी पढ़ाई होती थी। दुःख उस समय होता था जब छिलुुुक तेज हवा से बार बार बुझ जाता था। फिर उसे जलाने में बहुत परेशानी होती थी। क्योंकि हवा तेज आती थी। उस समय गेहूं की रोटी बड़ी चीज थी। घर के बड़ों और मेहमानों के लिए ही बनती थी । थान का भात और दाल भी बड़ों और मेहमानों के लिए ही होता था। परिवार के महिलाओं के लिए मडुवे की रोटी मक्के की रोटी कोनी का भात बनाया जाता था।


साल में एक बार पूरे परिवार के लिए कपड़े सिलने के लिए दर्जी अपनी मशीन के साथ घर पर आता था। और दो-तीन दिन में काम करके चला जाता था। बालबर भी महीने में बाल काटने घर पर आता था। लोहार भी दराती, चाकू, कुदाल, कहुन, बहुन और रमट आदि बनाकर लाता था ।

गेठी के पेड़ के तने से छाछ फालने वाला और दही जमाने वाली ठेकी आदि बनाने के लिए दो-तीन वर्ष बीच मे चुनियारा भी आता था।

यह सब लोग पैसा नहीं लेते थे। ये सभी लोग प्रतयेक फसल पर  अनाज ले जाते थे। घर के कई त्योहारों पर इन्हें बुलाया जाता था और उन्हें खुश करके भेजा ज्यादा था।

Investment Ideas-2

 Buy       JustDial      ₹710.      Target- ₹950