Friday, August 14, 2020

भगवान और भक्त

बहुत समय पहले की बात है, एक गांव में एक बच्चा रहता था। जिसका नाम कृष्णा था। उसके जन्म के कुछ समय बाद ही उसके माता-पिता का देहांत हो गया था। वह अपनी दादी के साथ रहता था। वह दोनों बड़ी कठिनाइयों से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। जब कृष्णा बड़ा हुआ उसकी दादी को उसकी पढ़ाई की चिंता होने लगी। उसने गुरुकुल में जाकर गुरुजी से कृष्णा को पढ़ाने की प्रार्थना की और गुरु जी कृष्णा को निशुल्क पढ़ाने के लिए तैयार हो गये। कृष्णा गुरुकुल जाने को बड़ा उत्साहित था । उसकी दादी चिंता में थी क्योंकि गुरुकुल जंगल के उस पार था और जंगल बहुत घना था। तथा वहां जंगली जानवर भी अधिक मात्रा में रहते थे। और उसे पार करना बहुत कठिन था। अगली सुबह कृष्णा को गुरुकुल जाना था दादी ने कृष्णा को कहा अगर तुझे रास्ते में डर लगे तो अपने गोपाल भैया को पुकारना। कृष्णा ने दादी से पूछा दादी ये गोपाल भैया कौन है, दादी ने कहा गोपाल तुम्हारे दूर के रिश्ते का बड़ा भाई है। वह उसी जंगल में गाय चराता है। सहायता के लिए पुकारने पर वह तुरंत चला आता है। कृष्णा यह सुनकर बड़ा खुश हुआ और वह गुरुकुल के लिए जाने के लिए तैयार हो गया। कृष्णा गुरुकुल के लिए रवाना हुआ डरता घबराता वह रास्ते पर चलता गया। आगे जाकर जंगल धना हो गया। तब कृष्णा ने पुकारा गोपाल भैया तुम कहां हो मुझे डर लग रहा है । मेरे पास चले आओ दादी ने कहा था तुम पुकारते हि चले आओगे। भगवान नन्हे कृष्णा की पुकार की उपेक्षा नहीं कर पाए और तुरंत चले आए कृष्णा ने देखा एक 14-15 साल का लङका गैया और बछडो के साथ बांसुरी बजाता चला आ रहा है। कृष्णा समझ गया और उसने सोचा यही गोपाल भैया हैं उसने गोपाल भैया से कहा मुझे जंंगल पार करा दो क्योंकि मुझे डर लग रहा है। गोपाल हंसते हुए बोले कृष्णा तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है मैं आ गया हूँ। उन्होंने कृष्णा को जंगल पार कराया और कृष्णा ने उनसे कहा गोपाल भैया मेरी सहायता के लिए शाम को भी बिना पुकारे आ जाना। लीलाधर कृष्णा से बोले डरो मत मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूूँ। वह खुशी-खुशी गुरुकुल चला गया। सारे दिन पढ़ाई कर लौट कर देखा तो रास्ते पर उसके गोपाल भैया खड़े थे। उनके साथ बहुत सारे गायें और बछड़े भी थे। कृष्णा दौड़कर अपने गोपाल भैया के पास पहुंचा गोपाल भैया ने उन्हें पीने के लिए गाय का ताजा दूध दिया। वहां दादी दिनभर कृष्णा की चिंता में बेचैन हो रही थी शाम को कृष्णा को आते देख उनकी जान में जान आई उन्होंने कृष्णा से पूछा जंगल में डर तो नहीं लगा। कृष्णा ने दादी को सारी कहानी सुनाई दादी को लगा किसी चरवाहे ने उसे जंगल पार करवाया होगा। अब यह रोज का नियम हो गया। गोपाल भैया कृष्णा को गुरुकुल से घर, घर से गुरुकुल छोङा करते थे। एक दिन गुरुकुल में गुरु जी का जन्मदिन मनाया जाना था। सभी बचचो को कुछ ना कुछ ले जाने वाले थे। कृष्णा को दूध लाने को कहा कृष्णा ने दादी से दूध मांगा तो दादी ने कहा बेटा हम तो गरीब हैं, खाने के भी पैसे नहीं है दूध कहां से लाएं। उदास होकर कृष्णा गुरुकुल की ओर चल पड़ा जब रास्ते में लीलाधर आए तो उन्होंने कृष्णा को उदास देखकर उसे उसकी उदासी का कारण पूछा। कृष्णा ने उन्हें सारी बात बताई तब भगवान ने उसे एक छोटी सी लोटे में दूध भर कर दिया। कृष्णा बहुत खुश हुआ उसने गुरुकुल जाकर गुरु जी की पत्नी को वह दूध दिया। छोटी सा लोटा देखकर वह हंसने लगी और उसने वह दूध खीर के बर्तन में उलट दिया। लेकिन यह क्या लोटा तो खाली ही नहीं हो रहा। बार बार उलटने पर भी वह लुटिया खाली नहीं हो रही थी। यह देख उन्होंने गुरु जी को पुकारा गुरु जी ने कृष्णा से पूछा कृष्णा तुमहे ये लुटिया कहां से मिली । तब कृष्णा नेे गुुरुजी को गोपाल भैया की सारी कहानी बता दी गुरु जी ज्ञानी पुरुष थे वह तुरंत समझ गई यह सब लीला भगवान की है। उन्होंने कृष्णा से कहा मुझे भी अपने गोपाल भैया से मिला दो कृष्णा उन्हें जंगल ले गया जब वह जंगल पहुंचा वहां कोई नहीं था उसके बार-बार पुकारने पर भी गोपाल भैया नहीं आए। तो वह रोने लगा अब भगवान तो भक्तों को तो दर्शन देते ही हैं। तो उन्होंने दर्शन के बदले एक तेज रोशनी से अपने ज्योति रूप का दर्शन दिया। जय श्री कृष्ण।

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